Life after retirement
02 मीनट समय निकालकर अवश्य पढ़ें।
*रिटायरमेंट के बाद :-शहर कोरबा में बसे नेहरू नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे। ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। *एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं रायपुर में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो बिलासपुर में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया* - आपने कभी *फ्यूज बल्ब* देखे हैं? बल्ब के *फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?* बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे *बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया* तो बुजुर्ग फिर बोले - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है। हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता। मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार सांसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने साहू जी बैठे हैं, एस .सी .सी.एल .के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे मरकाम साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो देवांगन.. जी इसरो में चीफ थे। *ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं*, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं तो कोई उपयोगिता नहीं। *उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता।* कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने अहम में होते हैं कि *रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं - रिटायर्ड आइएएस/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज आदि - आदि। अब ये रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/डाक्टर / अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट होती है भाई?माना कि आप बहुत बड़े ऑफिसर थे, *बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने रखती है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे...आपने कितनी जिन्दगी को छुआ... *आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी...समाज को क्या दिया,जाति बन्धुओं के कितने काम आए* लोगों की मदद की..या सिर्फ घमंड मे ही सूजे हुए रहे। पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए
*कि एक दिन सबको फ्यूज होना है।*
यह पोस्ट उन लोगों के लिए आईना है *जो पद और सत्ता होते हुए कभी अपनी कलम से समाज का हित नहीं कर सकते* और *रिटायरमेंट होने के बाद समाज के लिए बड़ी चिंता होने लगती है।* अभी भी वक्त है इस पोस्ट को पढ़िए और चिंतन करिए तथा समाज का जो भी संभव हो हित करिए... और अपने पद रूपी बल्ब से समाज, देश को रोशन करिए*।
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